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बुधवार, अक्तूबर 20, 2010

ब्लॉग का परिचय


जन्म, मृत्यु और विवाह
 जन्म यानि उत्पति. मृत्यु यानि समाप्त होना. विवाह यानि दो आत्माओं का मिलन. किसी भी प्राणी का जन्म होना.चाहे वो स्त्री-पुरुष के रूप में या अन्य किसी भी रूप में हो. उसके जन्म का समय, तारीख और स्थान सब परम पिता भगवान के हाथ में है.जिसे हम अनेकों नाम और रूपों से जानते हैं.इसी प्रकार से मृत्यु का समय, तारीख,स्थान और कारण भी जन्म होने के बाद ही परम पिता भगवान के खातों (एकाऊंट) में दर्ज हो जाता है. हर जन्म लेने वाले प्राणी द्वारा किये पाप पुन्य कर्मों के अनुसार ही आयु निर्धारित होती है. जहाँ एक ओर जन्म हेतु गर्भ में जब एक बीज अंकुरित होता है.तब चारों ओर खुशियों का संदेश लेकर आता है. बच्चे का जन्म होने के बाद ही एक महिला को मातृत्व प्राप्त होता है और ऐसा भी कहा जाता है की बच्चे के जन्म के बाद ही एक महिला संपूर्ण रूप से नारी बन जाती है.हम जहाँ एक ओर जन्म पर खुशियाँ मानते हैं.वहीँ दूसरी ओर मृत्यु पर (एकाध अपवाद छोड़ दें) शोक बनाया जाता है. जन्म की तारीख को "जन्मदिन" और मृत्यु की तारीख को "पूण्यतिथि" के रूप में जाना जाता है. जन्मदिन वाले दिन हमें फ़ोन,एसएम्एस, ईमेल और हर मिलने वाले व्यक्ति से ढ़ेरों शुभकामनाओं के साथ ही "मुबारकबाद" मिलती हैं. पूण्यतिथि वाले दिन सभी निकट संबंधियों के मन-मस्तिक में मृत व्यक्ति की यादों के चलचित्र चलते रहते हैं और आँखों के नम होने के साथ ही मौहाल गमिन होता है. संसारिक दुनियां की निरंतर विकास प्रक्रिया चलती रहे. इसीलिए एक स्त्री और पुरुष को विवाह के बंधन में बांधने की रिवाज़ है. जिसे विवाह या शादी कहा जाता है. विवाह-दो शरीरियों का मिलन ही नहीं, बल्कि दो आत्माओं का मिलन भी है. दो आत्माओं के मिलन की तारीख को हम सभी शादी की "सालगिरह" कहे या "वर्षगांठ" के  रूप में मानते हैं. दो आत्माओं के मिलन के बाद ही दांपत्य जीवन में आये उतराव-चढ़ाव के 365 दिनों को एक वर्ष के रूप में मानते हैं. जो भी दंपत्ति अपने दांपत्य जीवन में आये उतराव-चढ़ावों का विवेक, धैर्य और सहनशीलता से सामना करते हैं, वो सफल दंपत्ति कहलाते हैं
 आज हाईटेक दुनियां की भाग-दौड़ में अपने स्कूलों व व्यापारिक मित्रों को भूलते जा रहे हैं. आज हम उन रिश्तों को भी भुलाते जा रहे हैं. जो हमारे जन्म होने के बाद या विवाह के बाद बनते हैं. वैसे तो हर एक इंसान का हर दुसरे इंसान से इंसानियत का रिश्ता है. मगर हम आज मंदिर-मस्जिद, चर्च-गुरद्वारों में बँटकर "इंसानियत" जैसे पवित्र शब्द की गरिमा को भुलाते जा रहे हैं. "इंसानियत" जैसे पवित्र शब्द की गरिमा को बनाये रखने हेतु ही "शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन" परिवार ने एक "आपको मुबारक हो" ब्लॉग बनाकर अपने सभी स्कूलों व व्यापारिक मित्रों को एक मंच पर एकत्रित करने की एक छोटी-सी कोशिश की. जो समय की भागदौड़ में कहीं पीछे छुड़ते जा रहे  थें . काफी ऐसे मित्र होते हैं जिनसे अक्सर शादी या दुखद घटना के अवसर पर ही मुलाकात होती हैं. तब समय की कमी से अक्सर बातचीत का कम ही अवसर मिलता है. उपरोक्त ब्लॉग बनाने का मात्र एक ही उद्देश्य है. हम सभी एक बंधन में बधें रहे.  
मेरा आप सभी से विनम्र अनुरोध हैं कि-उपरोक्त ब्लॉग के सन्दर्भ में अपनी बहुमूल्य  शिकायतें सुझाव फ़ोन, ईमेल और पत्र द्वारा भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें. आप आप इसकी सुन्दरता हेतु अपनी नवीनतम फोटो शीघ्रता से भिजवायें. 

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